कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़ कर उसका अभिवादन किया| प्रतिउत्तर में चौगुनी आवाज़ में चार टूटे फूटे वक्तव्य रख दिए गए| उसके पश्चात तीन सेकंड की शान्ति और ढेर सारी हंसी
Doper's Diary
I Ooze my sentiments out, when they make me uncomfortable.
Saturday, December 11, 2021
Thursday, March 11, 2021
Monday, May 27, 2019
और जिस समय
और जिस समय
गुलमोहर के बौराये डाल पर बैठे
कुछ मदमस्त गौरये
बेपरवाह होकर झूल रहे थे
एक फुनगी से दूसरी फुनगी पर
और जिस समय
किसी पिता की आँखें भर आयी थी
जब उसके नवजात शिशु ने
अपनी नन्ही उँगलियों से
उसकी उँगलियों को थामा था
और जिस समय
सब्ज़ पहाड़ों के आँगन में
नदियों से तराशे गए किनारों पर
फुदक रहे थे सफ़ेद ऊन से ढके मेमने
और दौड़ रहे थे पुष्ट घोड़े
और जिस समय
अपने औलादों से कई मीलों दूर
बंजर सरहदों पर बने टीलों में
अगली गोली का इंतज़ार करता सैनिक
अपने घर वालों को याद कर रहा था
और जिस समय
बाढ़ में फ़सल उजड़ने के बाद
मातम मनाते माँ बाप
अपने बच्चों को भूखे पेट लेटाकर
रात की लोरियाँ सुना रहे थे
और जिस समय
विरह की वेदना में
फूट फूट कर रोता हुआ प्रेमी
अपनी प्रेमिका को आखिरी अलविदा कह कर
अचेत होकर गिर पड़ा था
और जिस समय
मैं और तुम उलझे थे
दुनिया और समाज के वकवास में
उसी समय,
यही निर्दयी समय
निगल रहा था मेरा एक हिस्सा
हमेशा हमेशा के लिए
गुलमोहर के बौराये डाल पर बैठे
कुछ मदमस्त गौरये
बेपरवाह होकर झूल रहे थे
एक फुनगी से दूसरी फुनगी पर
और जिस समय
किसी पिता की आँखें भर आयी थी
जब उसके नवजात शिशु ने
अपनी नन्ही उँगलियों से
उसकी उँगलियों को थामा था
और जिस समय
सब्ज़ पहाड़ों के आँगन में
नदियों से तराशे गए किनारों पर
फुदक रहे थे सफ़ेद ऊन से ढके मेमने
और दौड़ रहे थे पुष्ट घोड़े
और जिस समय
अपने औलादों से कई मीलों दूर
बंजर सरहदों पर बने टीलों में
अगली गोली का इंतज़ार करता सैनिक
अपने घर वालों को याद कर रहा था
और जिस समय
बाढ़ में फ़सल उजड़ने के बाद
मातम मनाते माँ बाप
अपने बच्चों को भूखे पेट लेटाकर
रात की लोरियाँ सुना रहे थे
और जिस समय
विरह की वेदना में
फूट फूट कर रोता हुआ प्रेमी
अपनी प्रेमिका को आखिरी अलविदा कह कर
अचेत होकर गिर पड़ा था
और जिस समय
मैं और तुम उलझे थे
दुनिया और समाज के वकवास में
उसी समय,
यही निर्दयी समय
निगल रहा था मेरा एक हिस्सा
हमेशा हमेशा के लिए
Tuesday, September 18, 2018
लिखो
लिखो तो ख़ुद को खोल कर लिखो
सतहें छिल कर लिखो,
आत्मा निचोड़ कर लिखो
ढकोसले से भरी दनियादारी पर लिखो
तरस आ जाये तो लाचारी पर लिखो
प्रेम को प्रेम लिखो
दर्द को दर्द लिखो
चाह को चाह लिखो
घुटन को घुटन लिखो
भीड़ में भरी उबासी पर लिखो
हारे हुए मुहब्बत की उदासी पर लिखो
लालच में डूबे समाज पर लिखो
जोंक की तरह खून चूसते रिवाज़ पर लिखो
लिखो तो यूँ लिखो कि
लिखने वाले भी बस तुम,
पढ़ने वाले भी बस तुम;
लिखो कि सुई की तरह लिखो
जो मवाद से भरे घाव को एक बार में फोड़ दे
सतहें छिल कर लिखो,
आत्मा निचोड़ कर लिखो
ढकोसले से भरी दनियादारी पर लिखो
तरस आ जाये तो लाचारी पर लिखो
प्रेम को प्रेम लिखो
दर्द को दर्द लिखो
चाह को चाह लिखो
घुटन को घुटन लिखो
भीड़ में भरी उबासी पर लिखो
हारे हुए मुहब्बत की उदासी पर लिखो
लालच में डूबे समाज पर लिखो
जोंक की तरह खून चूसते रिवाज़ पर लिखो
लिखो तो यूँ लिखो कि
लिखने वाले भी बस तुम,
पढ़ने वाले भी बस तुम;
लिखो कि सुई की तरह लिखो
जो मवाद से भरे घाव को एक बार में फोड़ दे
Saturday, September 08, 2018
Saturday, August 04, 2018
छतें टपक रही हैं
दीवारों में दरार है
पुरानी-नयी इमरतों का ढांचा
हमारी रीढ़ सा कमज़ोर
और बेकार है
दीवारों में दरार है
पुरानी-नयी इमरतों का ढांचा
हमारी रीढ़ सा कमज़ोर
और बेकार है
गुज़रे हुए हादसे पर विचार कर रहे हैं
आने वाले हादसे का इंतज़ार कर रहे हैं
आँख, मुँह, कान बंद कर लिया है,
नए हादसे को तैयार कर रहे हैं|
आने वाले हादसे का इंतज़ार कर रहे हैं
आँख, मुँह, कान बंद कर लिया है,
नए हादसे को तैयार कर रहे हैं|
किताबें फाड़ कर हथियार भर रहे हैं
भीड़ में भीड़ बनकर घास चार रहे हैं
पुरानी पट्टियों को धो धो कर
नए घाव का उपचार कर रहे हैं|
भीड़ में भीड़ बनकर घास चार रहे हैं
पुरानी पट्टियों को धो धो कर
नए घाव का उपचार कर रहे हैं|
Subscribe to:
Posts (Atom)
#पिता_पुत्र_डायरी
कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़...
-
जब कभी, मेरे पैमाने में, ख्वाइशों के कुछ बूंद छलक जाती हैं, तुम्हारी यादों की खुशबू, बहकी हुई हवाओं की तरह, मेरे साँसों में बिखर जाती हैं, ...
-
कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़...
-
फटे जूते, जिंदगी को, ठोकरों में लपेट कर, गलियों में खो गए, करवटें भारी भारी, ख्वाब सारे, बिस्तरों की सिलवटों में समेट कर, बेफ़िकर ही सो गयें,...