मैंने जब चलना सीखा होगा
माँ की ऊँगली पकड़कर
धीरे धीरे,
तब मैं भी आकाश की तरफ ताकता हूँगा
आज़ाद पानी की तरह बहते हुए
पंछियों को देखकर
मैंने भी अपने आसमान का दायरा नापा होगा
मेरी कल्पना के गुब्बारे
घूमते होंगे - अलसाए
उन वाले भेड़ो की तरह पहाड़ों पर
कूदते होंगे - बेफ़िकर
गिलहरियों की तरह जंगलो में
बचपन पन्नों के ऊपर से धुलता गया
मैंने पेट की लालच में
ईंट से दोस्ती कर ली थी
अब ख़याल,
बासी चेहरों की तरह लटकते हुए पपड़ी बनकर
दीवारों पर उभर आते हैं
और उड़ान की बातें
चहारदीवारी के भीतर दम तोड़ देती है
बचपना बहुत कुछ सिखाता है
आज़ाद बनो
पंछियों की उड़ान की तरह
आस्मां तुम्हारा इंतज़ार कर रही है