जब मेरे घुटने तक हीं आ पाती थी,
और आलिम, फ़ाज़िल, बुद्धिजीवियों की तालिमें
बस्ते में रह जाती थीं,
मैं तेज़ भाग कर चाँद चूमना चाहता था.
अब,
मेरी जिदद जब चाँद से हटकर,
रोटी पर थम आती है;
और अँगीठी पर हाथ सेक कर,
नींद मुझे आ जाती है;
तुम क्यूँ मेरी रोटी को नोंचने,
तुम क्यूँ मेरी रोटी को नोंचने,
मेरे गलिआरे आ जाते हो?
कभी मज़हब, कभी जाति बताकर,
कभी मज़हब, कभी जाति बताकर,
मुझको ठगते जाते हो.
वैसे भी,
हर नीलामी में,
मैं अपना वज़ूद बेचने जाता हूँ,
कुछ किस्से अपने कहता, कुछ औरों से सुन आता हूँ.
नीलामी के सिक्के रख लो
रोटी मुझको खाने दो,
आज बहुत मैं भूखा हूँ.
वैसे भी,
हर नीलामी में,
मैं अपना वज़ूद बेचने जाता हूँ,
कुछ किस्से अपने कहता, कुछ औरों से सुन आता हूँ.
नीलामी के सिक्के रख लो
रोटी मुझको खाने दो,
आज बहुत मैं भूखा हूँ.