सच तो ये भी है कि,
वक़्त की सारी साजिशें समझते हैं हम,
और,
खून की उबाल पर लगाम कसने वाले उसके ख़याल से,
अन्दर ही अन्दर जलते हैं हम.
सच तो ये भी है कि,
आईने और झुर्रियां - दोस्ती को बेताब हैं,
और,
रूह को कब्ज़े में रखने की तरक़ीब
उसने सीख ली है.
उठो, चलो !
सच की ऐसी कैफ़ियत को अनसुना करते हैं हम.
तोड़ते हैं आईने का श़क्ल, और,
पिंजरे के परिंदे को आज़ाद करते हैं.
आख़िर उम्र भी कभी ना कभी हिस़ाब मांगेगी
Wednesday, September 08, 2010
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हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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जब कभी, मेरे पैमाने में, ख्वाइशों के कुछ बूंद छलक जाती हैं, तुम्हारी यादों की खुशबू, बहकी हुई हवाओं की तरह, मेरे साँसों में बिखर जाती हैं, ...
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कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़...
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यूँ तो अक्सर, संवेदनाएं... हावी तुमपर रहती हैं, पर, इस शाम जन्मे, अपने बेचैनी के अनल में, मुझको चुपके झोंक देना; पन्नो में सिलवट पड़े तो, शब्...