Part 1
बंजारे अब्र की पहले - मंजिल ना राहें थीं
तुम्हारे लफ्ज़ सुनकर जैसे ठहर गया.
Part 2
मौसम का एक टुकड़ा बड़ा सर्द हुआ करता था,
दीवारों को भी कभी मीठा दर्द हुआ करता था.
तुम्हारे ज़िक्र की बारिश में रुह तर गयी
काशी घाट में गंगा हो जैसे - भर गयी. बंजारे अब्र की पहले - मंजिल ना राहें थीं
तुम्हारे लफ्ज़ सुनकर जैसे ठहर गया.
Part 2
मौसम का एक टुकड़ा बड़ा सर्द हुआ करता था,
दीवारों को भी कभी मीठा दर्द हुआ करता था.
दिन रात समंदर में उठती, बेचैनी की लहरें थीं,
प्यासी लहरों का भी कोई हमदर्द हुआ करता था.
इक चिड़िया,
ख्वाइशों की संदूक पर हौले से आ जाती थी,
पिछले बारिश जिस संदूक का चेहरा गर्द हुआ करता था.
प्यासी लहरों का भी कोई हमदर्द हुआ करता था.
इक चिड़िया,
ख्वाइशों की संदूक पर हौले से आ जाती थी,
पिछले बारिश जिस संदूक का चेहरा गर्द हुआ करता था.