Tuesday, September 25, 2012

दीमक


मेरे अन्दर एक दीमक है
वक़्त-बेवक्त
ख्यालों में सीलन लगने पर जाग जाता है
और धीरे धीरे चबाने लगता है
ख्वाइशों का एक एक पन्ना

जब पेट की भूख
सूखे पत्तों की तरह खड़ खड़ाने कर जलने लगती है,
तब
उसे शांत करने के लिए
समाज से बाल्टी भर पानी उधर ले आता हूँ
पानी सूंघते ही ख्यालों के जबड़ों में सीलन लग जाती है
दीमक जाग उठता है

लगाव


कभी जब मेरे शब्द केचुए की तरह
    मिट्टी में दिशाहीन रेंगते मिलेंगे
तुम चुपके से आकर
उनमे जादू फूंक देना

मुझे रेगिस्तान से बहुत लगाव है

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...