Thursday, April 12, 2018

प्रेयसी

हर सुबह, 
भोर की मृदु रौशनी 
जैसे छन के आती है 
बादलों से  
और फूँक जाती है 
अपना नि:स्वार्थ प्रेम
फूलों पर, पत्तों पर
दरिया और दरीचों पर 
वैसे ही मासूमियत से
तुम आती हो 
मेरी ज़िन्दगी में
हे प्रेयसी, 
हर सुबह  

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...