सौंधी सौंधी खुशबू थी, हलकी हलकी बारिश,
पलकों में खिली थीं नयी नयी ख्वाइश,
होश भी था हौसला भी...
वो खुली हवा में पतंग बनकर उड़ गया...
सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।
बुलबुला बनकर बहता था गलियों में,
बादलों कें काँधें पर बेलगाम छलियों सा...
लिखने निकला था अपनी दास्तान..ढूँढने आसमा का रास्ता॥
थामे जो मुश्किलों में...
आज वो..ऊँगली नहीं थीं, आचल नहीं था, लोरी नहीं थीं॥
अनजानी भीड़ में अनजाना जुड़ गया...
सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।
ख्वावों के रस्ते चलकर, पगडण्डी टेढ़े चढ़कर,
यारों का एक शहर था॥
छल्लों में शाम ढलती, सुबह किसको खबर था
होठो पर टूटी फूटी सीटी...और वही jeans पुरानी,
मशाल था वो,
आँधियों में जलता गया ... चलता गया ..चलता गया
खुद को पहचानने लिए सुर नया
सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।