काले धागे को उलझकर जाल बुनता,
सूखे सपनों के तरू से डाल बुनता,
पापी, प्यासा या अभागा रिक्त है ये,
मन अकेला चिर्चिराता,
बुझती राखों को जला फिर चीख सुनता॥
प्रपंच में लिपटे हुए षड्यंत्र बुनता,
अहम को भेट करने मंत्र बुनता,
शतरंज के छोटे दाव पर पागल सा हँसता,
चिर्चिराता, चोट खाता,
बुझती राखों को जला फिर चीख सुनता॥
सूखे सपनों के तरू से डाल बुनता,
पापी, प्यासा या अभागा रिक्त है ये,
मन अकेला चिर्चिराता,
बुझती राखों को जला फिर चीख सुनता॥
प्रपंच में लिपटे हुए षड्यंत्र बुनता,
अहम को भेट करने मंत्र बुनता,
शतरंज के छोटे दाव पर पागल सा हँसता,
चिर्चिराता, चोट खाता,
बुझती राखों को जला फिर चीख सुनता॥