ख्वाइशें फिर से मचलकर,
वक़्त से लड़ने लगी...
क्यूँ अक्स अपना तुझमे देखा?
मुझसे पूछा करने लगी...
अजनबी तुम आइना नही,
फिर परिचय अपना कैसा है?
आइना हंस पड़ा फिर,
शायद ...कोई मेरे जैसा है।
वक़्त कुछ पल,
मेरी मुट्ठी में थम जा,
मै अनाडी..पर तुझे तो समझ है,
लुक्का छिपी अजनबी से,
थोड़ा अनूठा थोड़ा सहज है...
Wednesday, February 04, 2009
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हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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जब कभी, मेरे पैमाने में, ख्वाइशों के कुछ बूंद छलक जाती हैं, तुम्हारी यादों की खुशबू, बहकी हुई हवाओं की तरह, मेरे साँसों में बिखर जाती हैं, ...
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कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़...
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यूँ तो अक्सर, संवेदनाएं... हावी तुमपर रहती हैं, पर, इस शाम जन्मे, अपने बेचैनी के अनल में, मुझको चुपके झोंक देना; पन्नो में सिलवट पड़े तो, शब्...