वहां,
उन अलसाए रस्तों के किनारे
सुस्त सा दरिया है कोई.
कभी बचपन में मैंने
वहां कागज़ की इक नाव डाली थी.
सुना है कि,
उन अलसाए रस्तों के किनारे
सुस्त सा दरिया है कोई.
कभी बचपन में मैंने
वहां कागज़ की इक नाव डाली थी.
सुना है कि,
आज भी वह नाव वहां मद मस्त बहती है.
कहीं टूटे से छज्जों पर,
परिंदे जब घोसलों में
अधखुली आँखों से अंगराई लेते हैं
कहीं बिस्तर की सिलवट में
कुछ ख़्वाब करवटें लेते हैं
मुझे लगता है कि फिर से नाव बनकर
नदी में मद मस्त हो जाऊं.