वहां,
उन अलसाए रस्तों के किनारे
सुस्त सा दरिया है कोई.
कभी बचपन में मैंने
वहां कागज़ की इक नाव डाली थी.
सुना है कि,
उन अलसाए रस्तों के किनारे
सुस्त सा दरिया है कोई.
कभी बचपन में मैंने
वहां कागज़ की इक नाव डाली थी.
सुना है कि,
आज भी वह नाव वहां मद मस्त बहती है.
कहीं टूटे से छज्जों पर,
परिंदे जब घोसलों में
अधखुली आँखों से अंगराई लेते हैं
कहीं बिस्तर की सिलवट में
कुछ ख़्वाब करवटें लेते हैं
मुझे लगता है कि फिर से नाव बनकर
नदी में मद मस्त हो जाऊं.
6 comments:
sundar parikalpna!
bahut khoobsurat rachna ... amazing collection of thoughts ..
mast rachna. behatarin khyal-khwaab se sajaya hua.adbhut parikalpana hai. likhte rahiye. hamari shubhkamana aapke sath hai.
bahut achchhi rachna.
आपके कमेन्ट से आपकी रचनाओं तक पहुंचा !
अच्छा लिखते हैं आप ! स्पेलिंग पर थोडा ध्यान दीजिये !
Beautiful !
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