Tuesday, January 05, 2010

सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया

सौंधी सौंधी खुशबू थी, हलकी हलकी बारिश,

पलकों में खिली थीं नयी नयी ख्वाइश,

होश भी था हौसला भी...

वो खुली हवा में पतंग बनकर उड़ गया...

सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।

बुलबुला बनकर बहता था गलियों में,

बादलों कें काँधें पर बेलगाम छलियों सा...

लिखने निकला था अपनी दास्तान..ढूँढने आसमा का रास्ता॥

थामे जो मुश्किलों में...

आज वो..ऊँगली नहीं थीं, आचल नहीं था, लोरी नहीं थीं॥

अनजानी भीड़ में अनजाना जुड़ गया...

सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।

ख्वावों के रस्ते चलकर, पगडण्डी टेढ़े चढ़कर,

यारों का एक शहर था॥

छल्लों में शाम ढलती, सुबह किसको खबर था

होठो पर टूटी फूटी सीटी...और वही jeans पुरानी,

मशाल था वो,

आँधियों में जलता गया ... चलता गया ..चलता गया

खुद को पहचानने लिए सुर नया

सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।

3 comments:

डिम्पल मल्होत्रा said...

सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया। coz पलकों में खिली थीं नयी नयी ख्वाइश,होश भी था हौसला भी...chahe use akele safar karna hoga.nahi honge uske pas wo sab थामे जो मुश्किलों में वो,ऊँगली नहीं थीं, आचल नहीं था, लोरी नहीं थीं..fir bhi khwab to the so सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।

गौतम राजऋषि said...

हम्म्म...कल ही तो जिक्र किया तुम्हारा मैंने अपने ब्लौग पर। लगता है हिचकियां आयी कि नयी कविता लिये चले आये...

कैसे हो?

हमेशा की तरह दिल के आसपास वाली कविता...

Unknown said...

u write so well.. dats inspires me to write too:)

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