हर सुबह,
भोर की मृदु रौशनी
जैसे छन के आती है
बादलों से
और फूँक जाती है
अपना नि:स्वार्थ प्रेम
फूलों पर, पत्तों पर
दरिया और दरीचों पर
वैसे ही मासूमियत से
तुम आती हो
मेरी ज़िन्दगी में
हे प्रेयसी,
हर सुबह
भोर की मृदु रौशनी
जैसे छन के आती है
बादलों से
और फूँक जाती है
अपना नि:स्वार्थ प्रेम
फूलों पर, पत्तों पर
दरिया और दरीचों पर
वैसे ही मासूमियत से
तुम आती हो
मेरी ज़िन्दगी में
हे प्रेयसी,
हर सुबह
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