Thursday, March 11, 2021

जो हैं नहीं वो चेहरा दिखलाये जा रहे हैं 
अपने से आईने को झुठलाए जा रहे हैं 

निकले थे भीड़ में बनने को हम मदारी 
मेले की डुगडुगी पर लहराए जा रहे हैं  

ठहरो कभी ख़ुद से दो चार बातें कर लो
ग़ैरों की महफ़िलों में पगलाए जा रहे हैं 

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हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...