Saturday, March 02, 2024

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते

जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से 

चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को 

नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो 


हम लड़ेंगे युद्ध जिनमें 

घूटने और एड़ी छीलेंगे 

फूलेंगे फेफड़े और धमनियाँ   

टूटेंगी हड्डियाँ और पसलियाँ 


पन्नों पर स्याही से चिंतन नहीं 

हम स्वेद और रक्त से किस्से कहेंगे 

पराजय और विफलता डराएंगी हमें, पर 

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे 

गुलमोहर की शाखों पर

बुलबुल, तोते झूल रहे हैं  

नीम की टहनी फुदक रही हैं 

बस्ती की आवारा गिलहरियाँ 


कुछ दिनों पहले तक 

अवसाद ही अवसाद था 


कॉलोनी के जिस पार्क में  

प्रेमिकायें छिप-छिप कर मिलती थीं 

-- अपने प्रेमियों से 

वहां अब मायूसी और सन्नाटा था

खाली पड़ी कुर्सियां 

लोगों के बैठने का इंतज़ार करती थीं  


दुकानें बंद थी 

उनके विषाद-ग्रस्त चौखट पर बैठे 

गली के कुत्ते 

अजनबियों को ताक ताक कर रोते थे

ना कोइ खाना देने आता था 

ना ही कोई उन्हें भगाता था|


मकानों की बेजान पपडियां 

दीवारों से लटकी थीं 

जैसे सब ने मान लिया था

पतझड़ में वो झड़ जाएंगे  


एक BHK कमरों में 

टंगे हुए कपड़ों के अंदर 

फटे पुराने सिकुड़े वॉलेट 

घंटे घंटे खुलते थे 

अंदर रक्खी तस्वीरों को देख देख कर 

चुपके चुपके रोते थे| 


कुछ दिनों पहले तक 

अवसाद ही अवसाद था

कोविड में प्रार्थना

यह प्रार्थना उनके लिए है, 

हे प्रभु! 

सुबह जिनकी खुलती है 

आंसुओं के बोझ से,और  

साँझ जिनकी ढलती है 

मृत्यु के चीत्कार सुनकर 


यह प्रार्थना उनके लिए है, 

हे प्रभु! 

जो युद्ध में डटकर खड़े हैं

स्वयं को कर के समर्पित

जो लड़ रहे हैं मृत्यु से, 

मृत्यु के व्यूह में घुसकर


यह प्रार्थना उनके लिए है, 

हे प्रभु! 

जो परिजनों की मृत्यु पर भी 

चाह कर रोये नहीं हैं 

नहीं पाँव जिनके डगमगाए

उद्देश्य जो खोये नहीं हैं  


यह प्रार्थना है, हे प्रभु! 

अस्पतालों में दिन रात लड़ते 

डॉक्टरों, नर्सों, वार्ड बॉय के लिए  

स्वास्थ्यकर्मियों, द्वारपालों के लिए

सपने

हथेली में कॅम्पास लेकर
सितारों को ताकते हुए 
समंदर लाँधने का सपना 
सुन्दर तो लगता है

पहाड़ों को चीर कर 
उनसे सुरंग बनाते हुए 
रास्ता ढूंढ़ने का सपना 
उन्माद भी देता है

सपने देखने और उन्हें पूरे करने के बीच 
तय करनी पड़ती हैं कई जटिल यात्राएं  
जागना पड़ता है अनगिनत रातों को,
घिसनी पड़ती है एड़ी-चोटियां

सपनों के इस पार से 
सपनों के उस पार तक जाने के लिए 
लगती है अटल साधना, सतत हठ;
सपने खोजती हैं पागलपन 
सपनों को चाहिए निर्विकार प्रयास 

फोमो

चल रही थी ज़िन्दगी बड़ी चैन से

दिख रहा था सब सुनहरा नैन से 

बेवज़ह जो बाँध ली 'फोमो' की घंटी 

उड़ गयी सब नींद दिन से रैन से 

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ये हुआ मिस, वो भी करना रह गया 

ROI उठाने का भी मौका बह गया 

कांफ्रेंस में देर तक चर्चा चली 

फेसबुक पर देख कर सब सह गया 

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फोमो की चासनी में छन रही है ज़िन्दगी 

पतीले में चाय सी उफन रही है ज़िन्दगी

दूसरों की ज़िन्दगी को देख कर बेचैन है 

'एक्सप्लोर' से कॉपी पेस्ट बन रही है ज़िन्दगी


Saturday, December 11, 2021

#पिता_पुत्र_डायरी

कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़ कर उसका अभिवादन किया| प्रतिउत्तर में चौगुनी आवाज़ में चार टूटे फूटे वक्तव्य रख दिए गए| उसके पश्चात तीन सेकंड की शान्ति और ढेर सारी हंसी


Thursday, March 11, 2021

जो हैं नहीं वो चेहरा दिखलाये जा रहे हैं 
अपने से आईने को झुठलाए जा रहे हैं 

निकले थे भीड़ में बनने को हम मदारी 
मेले की डुगडुगी पर लहराए जा रहे हैं  

ठहरो कभी ख़ुद से दो चार बातें कर लो
ग़ैरों की महफ़िलों में पगलाए जा रहे हैं 

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...