सच तो ये भी है कि,
वक़्त की सारी साजिशें समझते हैं हम,
और,
खून की उबाल पर लगाम कसने वाले उसके ख़याल से,
अन्दर ही अन्दर जलते हैं हम.
सच तो ये भी है कि,
आईने और झुर्रियां - दोस्ती को बेताब हैं,
और,
रूह को कब्ज़े में रखने की तरक़ीब
उसने सीख ली है.
उठो, चलो !
सच की ऐसी कैफ़ियत को अनसुना करते हैं हम.
तोड़ते हैं आईने का श़क्ल, और,
पिंजरे के परिंदे को आज़ाद करते हैं.
आख़िर उम्र भी कभी ना कभी हिस़ाब मांगेगी
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हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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It was 9th of may 2008. I was expecting the clouds to rain heavily and the winds to shove me hard. My anticipations and desires to look othe...
7 comments:
आख़िर उम्र भी कभी ना कभी हिस़ाब मांगेगी
well said!
i am feeling old
:(
बहुत बढ़िया.
@ Anjana and Sameer Sir - Thanks
@ Shivang :) waqt rukta hai kahin tham kar...iski aadate bhi aadmi si hai
gud1..touched the heart..very true..manish
awesome, boy! reminded me of rdb..khalbali!
todte hain aaine ki shakl!! rad!
Sir, u must have heard this many times for your posts ... i suppose... but there's no harm repeating it again... u write with such expressions and so much emotions that it feels true.. about everything u write! keep writing... waiting for your next post.. sincere admirer.. ritika
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