कतल कुछ मैं भी करता हूँ,
कतल आप भी कर लीजे
दरिया खून से अब बस सूर्ख़ हो जाए
लकीरें मैं तनिक खींचू,
दीवारें आप खड़ी कर लीजे
अर्ज़ ख़ुद में सिमट कर बस दफ़्न हो जाए
भूखे पेट की अर्ज़ी,
कहाँ कोई आज सुनता है...
कि बोटियाँ नोच कर अपनी
भूख कुछ कम ही हो जाए
तमाशा आप का लिक्खा,
गर्द और रंज लाया है
दुआओं में परिंदों ने बस राख़ पाया है.
शर्म कुछ मैं भी करता हूँ,
शर्म कुछ आप कर लीजे
कुछ अश्कों को पीकर शायद,
अपनी नियत बदल जाए
3 comments:
कुछ अश्कों को पीकर शायद,
अपनी नियत बदल जाए ...rone wale tujhe rone ka saleeka bhi nahi.ashk peene ke liye hai na ki bahaane ke liye:-)
Bow to thee!
Awesome stuff!!
@ Vikalp and Dimple - Thanks
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