Saturday, January 23, 2010
फ़ासला
वक़्त की दरख़्त पर,
उम्मीदों की ख़रोच का नामोनिशां कंही है नहीं।
और,
शून्य सी खड़ी है वही शीशे की दीवार;
एक तरफ़ ठण्ड में ठिठुरता रहता है चाँद,
और एक तरफ़ हुक्के के धुंए में जिंदगी मदहोश है।
तुम्हारी रोशनदानी में जब मैं झांकता हूँ,
दिखता है वही चराग़
बेचैन, इंक़लाब के जिदद में,
फड फडाता रूह मेरी ताकता है।
जब फुर्सत मिले,
तुम, तुम्हारे चाहने और जानने वाले सारे लोग
एक छत के नीचे जमा होकर,
तब तक...
हँसते रहना, बातें करना, रोते रहना, ख़ूब लड़ना,
जब तक सारी बेतुकी ख्वाइशें झुर्रिया बनकर चेहरे पर उभर न जाएँ;
फिर लौट जायेंगे सब अपनी गली,
और नयी सुबह,
बेरुखी जिंदगी से फ़ासला कम हो जाएगा।
Monday, January 11, 2010
Something Random
Wednesday, January 06, 2010
Old Memories
http://www.youtube.com/watch?v=mvjd91UctuM
Tuesday, January 05, 2010
सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया
सौंधी सौंधी खुशबू थी, हलकी हलकी बारिश,
पलकों में खिली थीं नयी नयी ख्वाइश,
होश भी था हौसला भी...
वो खुली हवा में पतंग बनकर उड़ गया...
सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।
बुलबुला बनकर बहता था गलियों में,
बादलों कें काँधें पर बेलगाम छलियों सा...
लिखने निकला था अपनी दास्तान..ढूँढने आसमा का रास्ता॥
थामे जो मुश्किलों में...
आज वो..ऊँगली नहीं थीं, आचल नहीं था, लोरी नहीं थीं॥
अनजानी भीड़ में अनजाना जुड़ गया...
सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।
ख्वावों के रस्ते चलकर, पगडण्डी टेढ़े चढ़कर,
यारों का एक शहर था॥
छल्लों में शाम ढलती, सुबह किसको खबर था
होठो पर टूटी फूटी सीटी...और वही jeans पुरानी,
मशाल था वो,
आँधियों में जलता गया ... चलता गया ..चलता गया
खुद को पहचानने लिए सुर नया
सयाना चूजा घोसले से फुर्र फुर्र उड़ गया।
हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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जब कभी, मेरे पैमाने में, ख्वाइशों के कुछ बूंद छलक जाती हैं, तुम्हारी यादों की खुशबू, बहकी हुई हवाओं की तरह, मेरे साँसों में बिखर जाती हैं, ...
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कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़...
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यूँ तो अक्सर, संवेदनाएं... हावी तुमपर रहती हैं, पर, इस शाम जन्मे, अपने बेचैनी के अनल में, मुझको चुपके झोंक देना; पन्नो में सिलवट पड़े तो, शब्...