दर्द की हँसी
वक्त के साथ साथ
मुरझा गई।
आंधी का पंजा
बहुत नुकीला था;
ज़ख्मी ढिबरी
काँप काँप कर हार गई।
झील के आंसू
बहते बहते सूख गए;
ज़ालिम पतझर,
पल्लव उसके कल नोंच गया।
तेरी चिट्ठी,
बारिश में वो पढता था ,
कल
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
4 comments:
zindagi shayad inn betuke lamhon mein hi sabse adhik kareeb aur spast nazar aati hai......
iss betukepann mein dard ke tukde badi khoobsoorti se piroye hain aapne....
"झील के आंसू बहते बहते सूख गए;
ज़ालिम पतझर,पल्लव उसके कल नोंच गया।"
yeh khayaal to bas laajawaab hai.... picturesque....
hmmmm..............
kahna padega ... 'Tej ho gae ho '
nice one.....specially the lines
झील के आंसू बहते बहते सूख गए;
ज़ालिम पतझर,पल्लव उसके कल नोंच गया
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