तुम्हारे विचारों और व्यक्तित्व पर,
जब भी
गहराई से विश्लेषण की बात उठती है,
दुनिया और भी खोखली दिखती है।
सम्भव है,
मेरी विकृत बुद्धि,
सच के दूसरे पहलू से वंचित रह जाती है,
विनाश और विध्वंश में उलझकर,
मुर्छित, हर्षित और मंद सड़ जाती है;
परन्तु,
साम्यवाद और समाजवाद का वस्त्र,
सिद्धांत और विनय का शस्त्र,
उतना ही मैला
उतना ही आधार हीन दिखता है;
जब,
किसी अपरिचित के घाव को देख,
तुम भौं सिकोड़ कर निर्माण के गीत गाते हो।
तब शायद,
विवादों और कर्तव्य के बोझ में उलझे सारे पृष्ट,
आडम्बर की परिधि में बंधी तुम्हारी दृष्टि;
मेरे स्वार्थ और निराशा की काली दुनिया के समक्ष,
फीके पड़ जाते हैं।
Wednesday, September 16, 2009
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हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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1 comment:
..thought provoking sir !!
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