दर्द की हँसी
वक्त के साथ साथ
मुरझा गई।
आंधी का पंजा
बहुत नुकीला था;
ज़ख्मी ढिबरी
काँप काँप कर हार गई।
झील के आंसू
बहते बहते सूख गए;
ज़ालिम पतझर,
पल्लव उसके कल नोंच गया।
तेरी चिट्ठी,
बारिश में वो पढता था ,
कल
दर्द की हँसी
वक्त के साथ साथ
मुरझा गई।
आंधी का पंजा
बहुत नुकीला था;
ज़ख्मी ढिबरी
काँप काँप कर हार गई।
झील के आंसू
बहते बहते सूख गए;
ज़ालिम पतझर,
पल्लव उसके कल नोंच गया।
तेरी चिट्ठी,
बारिश में वो पढता था ,
कल
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...