साल दर साल
वक़्त चुपके से आकर
अपने हँसिया से
काट जाता है
उम्र का एक और साल;
और पीछे छोड़ जाता है
सर-कटा नंगा सा ठूँठ|
वक़्त चुपके से आकर
अपने हँसिया से
काट जाता है
उम्र का एक और साल;
और पीछे छोड़ जाता है
सर-कटा नंगा सा ठूँठ|
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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