Sunday, June 11, 2017

इश्क़ मुहब्बत वाला लौंडा जब झंडा लेकर घूमने लगा

2012 के मई की चिलचिलाती गर्मी चीटियों की तरह शरीर पर चुभ रही थी| ज़मीन एक एक क़तरा पानी के लिए ललचाये निग़ाहों से आसमान की तरफ़ ताक रहा था, लेकिन बादल भी जिद्दी और बदमिज़ाज महबूबा की तरह रूठ कर यूँ कहीं दूर चले गए थे कि दूरबीन से ढूंढने पर भी नहीं दिखते| गर्म सांस छोड़ती हुई सड़कों के किनारे लगे छोटे छोटे पौधे झुलस कर अस्पताल से निकले गरीब बूढ़े मरीजों की तरह अपने जीवन और मृत्यु पर विचार कर रहे थें|

पटना कॉलेज में अभी-अभी इतिहास का एक लेक्चर ख़त्म हुआ था| लेक्चर-रूम में जिराफ़ के गर्दन की तरह चारो ओर लटके पंखों से "घूं-घूं" की आवाज़ के साथ हवा भी आती थी लेकिन तापमान इतना ज्यादा था कि उससे कोई अंतर नहीं पड़ता| लोग कहते पटना हैं कि कॉलेज की ये शाही इमारतें अंग्रेजो ने बनवायी थी लेकिन लाल पीली दीवारों से फ़िसलती और टपकती पपड़ियों को देख कर ऐसा लगता था कि ये दीवारें बौद्ध काल में बनायीं गयी थीं|

कॉलेज के सामने एक बड़ा सा मैदान है जिसमे अगल बगल के कई सारे बच्चे क्रिकेट खेलने के बहाने ग़रीबी और लाचारी के दर्द को थोड़ी देर तक ढक लेते थे| मैदान के एक छोर पर अकेले बैठा हुआ विहान मैदान में ताक रहा था| विहान से यदि कोई पूछता कि मैच में क्या हो रहा है तो शायद वो बता नहीं पाता, शायद उसे अहसास भी नहीं होगा कि कोई मैच चल रहा है, लेकिन पिछले एक घंटे से बैठकर वो मैदान में खेलते हुए बच्चों की ओर देख रहा था| गर्मी थमने का नाम नहीं ले रही थी और ऊपर से कॉलेज के कई सारे बोरिंग क्लॉस| विहान देख तो मैदान की तरफ़ रहा था लेकिन उसके दिमाग में आने वाले कल और बीते हुए कल की तस्वीरें खटाखट घूम रही थीं|

ये पहली बार नहीं था जब विहान यूँ अकेला बैठ कर अपने बारे में सोच रहा था| महीने में एक दो बार अपने दोस्तों से दूर एकांत में एक दो घंटे बैठ कर विहान कुछ अजीब अजीब विषयों पर जैसे कि "ग़रीबी का क्या अंत है", "क्या दूसरे ग्रहों पर जीवन है", "इतिहास वाले प्रोफ़ेसर को नौकरी में किस चीज़ से तसल्ली मिलती होगी", "अल्ताफ राजा की गर्लफ्रेंड होगी क्या" सोच लेता था और फिर भूल जाता था| ये एक दो घंटे उसके मशीन की तरह चलती ज़िन्दगी में lubricant जैसा काम करती थी|

"भैया, एक कोला वाला आइसक्रीम देना", विहान के पीछे खड़े आइसक्रीम वाले से एक लड़की ने पुछा

विहान पीछे पलट कर देखा और तीस सेकंड के अंदर उसे लड़की से प्यार हो गया|  उसने लड़की की तरफ़ देखा, लड़की ने उसकी तरफ़ देखा; विहान के लिए मौसम का मिज़ाज सुधर गया और तापमान पंद्रह डिग्री कम हो गया| ये सब पांच मिनट के लिए हुआ और फिर ख़त्म हो गया| लड़की गेट नंबर तीन से अशोक राजपथ की तरफ़ निकल गयी| विहान ने ना तो उसका नाम पूछा, ना मोबाइल नंबर और ना ही ये पूछा कि किस कोचिंग सेंटर या कॉलेज में वो पढ़ रही है| दो दिन तक विहान का मन किसी चीज़ में नहीं लगा| विहान कॉलेज तो जाता था लेकिंग लेक्चर हॉल की जगह मैदान के उस कोने में बैठता था जहाँ उसे वो लड़की पहली बार दिखी थी| शाम को घर जाकर वो "चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला" सुनता था तो कभी कुमार सानू के साजन के गाने सुनता था|

ये भी पहली बार नहीं था कि विहान को इश्क़-मुहब्बत-कोकाकोला हुआ था| विहान को हर कुछ महीनों में प्यार हो जाता था| फिर वो रातों को ग़ुलाम अली, जगजीत सिंह और कुमार सानू के गाने सुनता, शायरी सुनता, गाने गाता और कुछ दिनों बाद सब कुछ भूल जाता|

असल में विहान एक सामान्य लड़का था| उसमे कोई सुपरपावर नहीं था ना ही उसके जन्म के समय ज्योतिषियों ने बोला था कि ये लड़का बवाल मचाएगा| विहान एक खुशमिज़ाज क़िस्म का लड़का था| विहान दोस्तों के साथ बैठ कर हंसी मज़ाक करता था, उसके दिमाग में उल जलूल प्रश्न आते थें, उसे गुस्सा आता था, उसे परेशानी होती थी, उसे प्यार होता था| कॉलेज, मोहल्ले और राज्य में नेताओं को कई बार उल्लू बनाते हुए देखने के बाद राजनीति में उसकी दिलचस्पी ख़त्म हो गयी थी| विहान को बुरी ख़बरें पढ़कर बुरा लगता था, अच्छी ख़बर पढ़कर अच्छा लगता था| विहान एक सामान्य लड़का था|

2017 की मई में गर्मी पहले से भी ज्यादा बढ़ गयी है, लेकिन अब विहान को इश्क़-मुहब्बत-कोकाकोला रास नहीं आता| अब विहान जैसे लड़कों को शायरी और ग़ज़लें पसंद नहीं आती| उनके तकियों के नीचे ग़ालिब और फैज़ की शायरी नहीं होती| वो अकेले  बैठते तो हैं, लेकिन मोबाइल के updates के साथ| सब के सर पर मुहर लगा दिया गया है| अलग अलग पार्टियों और अलग अलग वादों का| कोई राइट विंग है, कोई अलगाववादी है, कोई विराट हिंदू है, कोई आपटर्ड, कोई जिहादी एंटी नेशनल, कोई मोडिटार्ड, कोई संघी, कोई सिकुलर| अब कोई भी सामान्य नहीं है|

लोग कहते हैं कि कोई बड़ा सा युद्ध चल रहा है -- विचालधराओं का युद्ध| इसलिए सब जायज़ है|  इंटरनेट पर चौबीसो घंटे हज़ारो लोग आपके एक शब्द का इंतज़ार करते हैं और आपके कुछ बोलते ही विपक्षी खेमे वाले आपके शब्दों को चीड़ फाड़ करके उसमें से misogyny, bigotry, sickulasim, fanatism, communalism सब निकाल देंगे| आप बस अपना पक्ष पकड़ लीजिये और उसके साथ आँख बंद कर के जुड़ जाइये| अपने पक्ष की गलतियों पर बोलना कमज़ोरी की निशानी होगी और ऐसा करने पर आपको थाली का बैगन घोषित कर दिया जाएगा|

खड़े रहिये, लड़ते रहिये, टीके रहिये| आप एक महायुद्ध का हिस्सा बन चुके हैं जिसका आपको कुछ पता भी नहीं| 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-06-2017) को
रविकर यदि छोटा दिखे, नहीं दूर से घूर; चर्चामंच 2644
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Amrita Tanmay said...

प्रभावी ।

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...