घर में, शहर में
जंगल, खेत, नहर में
चूल्हे पर रोटियों की तरह सिकती हैं
फूहड़ता बिकती है
हम मानने के लिए मान लेते हैं कि
सामने वाला भद्दा और मैला है
हम चेहरा देख कर परख़ लेते हैं कि
ज़ेहन में उसके पनपता हुआ सोच - विषैला है
आईने में सब दिखता है
ये तम झाम,
ये शोर शराबा
अपनी दरिंदगी ही नहीं दिखती है
आईने का सच नहीं बिकता, फूहड़ता बिकती है
जंगल, खेत, नहर में
चूल्हे पर रोटियों की तरह सिकती हैं
फूहड़ता बिकती है
हम मानने के लिए मान लेते हैं कि
सामने वाला भद्दा और मैला है
हम चेहरा देख कर परख़ लेते हैं कि
ज़ेहन में उसके पनपता हुआ सोच - विषैला है
आईने में सब दिखता है
ये तम झाम,
ये शोर शराबा
अपनी दरिंदगी ही नहीं दिखती है
आईने का सच नहीं बिकता, फूहड़ता बिकती है
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