Friday, July 20, 2012

मैं तुम्हे शहर दिखाना चाहता था


अम्मा,
जब देर रात तक बिजली जाने पर,
तुम पंखा हौंका करती थी
जब बिना exhaust और बिन AC के
तुम तपती गर्मी...
चूल्हा चौका करती थी
मैं तुम्हे शहर दिखाना चाहता था

अम्मा,
जब बस 14 इंच के black and white पर,
सारा घर,
रंगोली देख देख कर रंगता था
जब सुरभि के एक एक ख़त पर
चाँद शरिखे,
सबका चेहरा टंगता था
मैं तुम्हे शहर दिखाना चाहता था

आज बड़ी बड़ी दीवारें हैं
ऊँची Buildings, AC वाली कारें हैं
मैं बालकोनी में चढ़कर
शहर का ज़हर, अकेले पी लेता हूँ.
झूट तुम्हे कहता हूँ कि, पेट भरा है
सच तो है कि
हर रात Maggie पर भूखा ही जी लेता हूँ

आज वो बारिश वाली सड़क नहीं है,
जहाँ कपडे गंदे करके, मैं घर हँसते हँसते आता था
अम्मा आज वो खाट नहीं है,
जिसपर मैं तौलिया लिपटे
superman बनकर रोटी तरकारी खाता था
इस LCD TV में black and white रंग नहीं हैं

अम्मा,
तुम शहर कभी मत आना

4 comments:

Bhoopesh Dhurandhar said...

Simple but really Meaningfull..well written..

Black Loraine said...

A class. Sir, you HAVE to get this published.

Deepika said...

amazing... truly amazing... Loved it!

Unknown said...

best of what i have read in a long time

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...