रास्ते खो जायें कहीं ना,
धुएँ की ख़ामोशी में...
शाम कब मूह फेर लेगा
अनकही मदहोशी में
मौला तूने महताब देकर
रात के आँचल की बदनामी बचा ली
मौला तूने हालह के नूर से
अब्र की अनकही गुमनामी छिपा ली
यार मौला,
मैं भी ख़ुद की शोर में, कहीं खो गया हूँ
इस अमावस मेरे सर पर भी
'shawl' रख देना
ये पुलिया थोड़ी लम्बी है
1 comment:
behtreen
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