चूल्हा जलता है,
भूख़ नहीं मरती
बड़े बड़े दीवारों के पीछे
काली मैली परछाईयाँ हैं
सच का झूटा बुलबुला
बहुत सारे सच का खून पीकर बड़ा बनता है
दो वक़्त की रोटी, एक पहर का दाल
All in all we are just another brick in the wall
धर्म और जाति का जन्म
सुरक्षा के लिए हुआ होगा
सुरक्षा के लिए हुआ होगा
कभी शायद
अब दीवारों पर सजाने के काम आता है
तुम धर्म और जाति बेचने आते हो,
बदले में मुझे ख़रीद जाते हो
मुल्क की भूख़
और तुम्हारे चाय की चुस्की
कब शांत होगी ये ख़ूनी भूख़
कब थमेगा ये बवाल
All in all we are just another brick in the wall
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