हमारे किस्सों का, हमारे मनोरंजन का
आकार जो इतना बदल गया है
Facebook की दीवारों पर
श्रद्धांजलि और क्रांति की बातें लौट आयी हैं
हमारा गुस्सा, आग की लहरों सा फ़िर फैलेगा
हम like करेंगे, arguments लिखेंगे
फ़िर अगली ख़बर की भूख़ में facebook पर वापस चल पड़ेंगे
आग लगती है,
ख़ून की स्याहियों में डुबोकर ख़बर का इक चेहरा
बाज़ार में पड़ोसा जाता है.
संवेदनाओं की अगरबत्तियां
हिन्दुस्तान के कूचे कूचे में जलती हैं
ख़बर की कब्र अगले साल तक फ़िर महफूज़ रहती है
असमर्थता यह नहीं कि हम कुछ कर नहीं सकतें
असमर्थता यह है कि,
हमें मालूम नहीं हम कुछ करना ही क्यूँ चाहते हैं
हमारे किस्सों का, हमारे मनोरंजन का
आकार जो इतना बदल गया है
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