बैरी बड़े इतरायें,
अंखियों ने जो गीत लिखा है,
मोहे सारी रात चिढाये;
मोसे और लिखा नहीं जाए..
दर्द ये मीठा, थमता नहीं है,
सावन भी रह रह इतराए
हर आहट हम करवट बदलें,
मोहे सजनी की याद सताए
मोसे और लिखा नहीं जाए
याद में तोरी रात गुजर गयी,
बदरा पिघल छिप जाए
नयनो में तोहे भर लेंगे,तोरे नयनो से अब ना लजाएँ
मोसे और लिखा नहीं जाए...
*Inspired by मोरे सैयां मोसे बोलत नाही
2 comments:
हर आहट हम करवट बदलें,..मोहे सजनी की याद सताए.. सुन्दर अभिव्यक्ति
अंखियों ने जो गीत लिखा है,
मोहे सारी रात चिढाये
Kya baat hai!
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