अंधी गलियों में हज़ारों,
प्यासे चूल्हे जलते हैं;
भूखे कुँए में सभी बेआबरु घुट कर मरते है।
इंसान की फ़ितरत बता कर,
भीख को आदत सुना कर,
तुमने उनको ठुकरा दिया था,
तुमने सब झूठला दिया था।
तेरे किस्से भी ख़रीदे थे रे बन्दे,
तेरे ही दरबार से;
हकीक़त की आंधी में जब,
असूलो का चोला,तेरा ही
चूभा था तुझे और,
अंधेरे कुँए में,
डुबकी लगाकर,
तुम,
दुनिया की महफ़िल में शामिल हुए थे।
बेच आया,
तेरे सारे किस्से,
वक्त के बाज़ार में...
2 comments:
yeh kisse tere hain yaa us bandi kee.......
waise you have started acting like a bourgeoisie,
mujhe laga tu poore duniya kee kisse ek saath sunanae ki kosshish kar raha hai
hey… har baar aise hi likhte rahoge to hum heart attack se marr jayenge…samjhe… bahut bahut gehri si baatein keh jaate ho har baar… aur iss baar mujhe jo accha laga vo yeh ki inspite of the poetic freedom u have undertaken(use of metaphors, analogies, etc..), u have kept it straight nd simple enuf to be comprehended by a comman person…. the message is clear….
“हकीक़त की आंधी में जब,
असूलो का चोला,तेरा ही
चूभा था तुझे और,
अंधेरे कुँए में,
डुबकी लगाकर,
तुम,
दुनिया की महफ़िल में शामिल हुए थे।”
i shud say ‘truth unveiled’….
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