Monday, March 30, 2009

London Calling...

दर्द की मीठी, मीठी
ठंडी खुशबू,
और साथ तुम, रात तुम,
नर्म धुप की पगली चादर,

सुबह चाँदनी बन पिघलती ओस सी,
और,
जिंदगी अंगडाईयाँ लेती
तुमसे टकराकर...
और साथ तुम, रात तुम;

मैं वहां, कुछ बहुत छोड़ आया,
और यहाँ,
भीड़ में,
खोजता हूँ,
smiley , और सपनो का आधा हिस्सा

और साथ तुम, रात तुम,
रहती....
रहती शायद....

खेल में, रेल में
काश फिर लौट आए लम्हें
और साथ तुम, रात तुम,
रहती....
रहती शायद...

1 comment:

Metamanish said...

sahi hai..

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...