जो हैं नहीं वो चेहरा दिखलाये जा रहे हैं
अपने से आईने को झुठलाए जा रहे हैं
अपने से आईने को झुठलाए जा रहे हैं
निकले थे भीड़ में बनने को हम मदारी
मेले की डुगडुगी पर लहराए जा रहे हैं
ठहरो कभी ख़ुद से दो चार बातें कर लो
ग़ैरों की महफ़िलों में पगलाए जा रहे हैं
ग़ैरों की महफ़िलों में पगलाए जा रहे हैं