Saturday, December 11, 2021

#पिता_पुत्र_डायरी

कल ऑफिस से लौटा तो अगस्त्य ने दरवाज़े पर आकर अपनी अस्पष्ट भाषा में चिल्लाते हुए स्वागत किया| उत्तर में मैंने दोगुनी आवाज़ में बेतुके वाक्य चीख़ कर उसका अभिवादन किया| प्रतिउत्तर में चौगुनी आवाज़ में चार टूटे फूटे वक्तव्य रख दिए गए| उसके पश्चात तीन सेकंड की शान्ति और ढेर सारी हंसी


Thursday, March 11, 2021

जो हैं नहीं वो चेहरा दिखलाये जा रहे हैं 
अपने से आईने को झुठलाए जा रहे हैं 

निकले थे भीड़ में बनने को हम मदारी 
मेले की डुगडुगी पर लहराए जा रहे हैं  

ठहरो कभी ख़ुद से दो चार बातें कर लो
ग़ैरों की महफ़िलों में पगलाए जा रहे हैं 

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...