Saturday, August 04, 2018

छतें टपक रही हैं
दीवारों में दरार है
पुरानी-नयी इमरतों का ढांचा
हमारी रीढ़ सा कमज़ोर
और बेकार है

गुज़रे हुए हादसे पर विचार कर रहे हैं
आने वाले हादसे का इंतज़ार कर रहे हैं
आँख, मुँह, कान बंद कर लिया है,
नए हादसे को तैयार कर रहे हैं|

किताबें फाड़ कर हथियार भर रहे हैं
भीड़ में भीड़ बनकर घास चार रहे हैं
पुरानी पट्टियों को धो धो कर
नए घाव का उपचार कर रहे हैं|

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