फिर तेरी आवारगी, चराग़ सी इतराने लगी है
बंद रौशंदानियों से, रौशनी फिर आने लगी है
ख़ामोश ठहरा खँडहर, सदियों से यूँ बेज़ार था
ज़िन्दगी तेरी लुकाछिपी, फिर गुदगुदाने लगी है
हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो हम लड़ेंगे युद्...
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