Monday, January 09, 2012
Friday, January 06, 2012
Vulgarity
दीमक
खरोचते हैं
लकड़ियों को
उन्हें भूख से ज्यादा
लकड़ियों की रूखी आवाज़ पसंद है
सच कहूँ तो,
उस रूखी आवाज़ में जो vulgarity होती है
मुझे कई रात जागने पर मज़बूर कर देती है
मैं जागता हूँ, क्यूंकि
मुझे दीमक वाले ख्यालों के साथ
सोने में डर लगता है
Thursday, January 05, 2012
Woofing Chants
My lungs are swollen
The veins smell rotten
I have scratched my skin
to explore worthlessness
सच सच सच
ख़याल और विचार का स्वाद बहुत बेहूदा लगता है
किसी लकड़ी की कुर्सी पर बैठ कर
चाय पीने में जितना गला घुटता है, जितनी बेचैनी महसूस होती है
वैसा ही आज इन रास्तों को देख कर हो रहा है
I can't stare those yellow leafed dusky lanes
spread like my tongue dragged with husky veins
I have itched my socks, threads entangled in fingers
My nails stink like society
समाज, अकेलापन और फिर से समाज
शब्दों को नोच नोचकर स्याही बनाता हूँ
बड़ी बड़ी नशीली आँखें फिर स्याही में किरोसिन डालकर,
आग लगाती हैं
क्रांति, राख़ और फिर से क्रांति
कभी कभी
existence और non existence की absurdity ,
कान में जब हथोड़ा मारती है
लगता है कि,
चीख़ कर फेफड़े और अतारियां सब निकल दूँ
पर एक escapist हूँ ना...
मरने से डरता हूँ
The veins smell rotten
I have scratched my skin
to explore worthlessness
सच सच सच
ख़याल और विचार का स्वाद बहुत बेहूदा लगता है
किसी लकड़ी की कुर्सी पर बैठ कर
चाय पीने में जितना गला घुटता है, जितनी बेचैनी महसूस होती है
वैसा ही आज इन रास्तों को देख कर हो रहा है
I can't stare those yellow leafed dusky lanes
spread like my tongue dragged with husky veins
I have itched my socks, threads entangled in fingers
My nails stink like society
समाज, अकेलापन और फिर से समाज
शब्दों को नोच नोचकर स्याही बनाता हूँ
बड़ी बड़ी नशीली आँखें फिर स्याही में किरोसिन डालकर,
आग लगाती हैं
क्रांति, राख़ और फिर से क्रांति
कभी कभी
existence और non existence की absurdity ,
कान में जब हथोड़ा मारती है
लगता है कि,
चीख़ कर फेफड़े और अतारियां सब निकल दूँ
पर एक escapist हूँ ना...
मरने से डरता हूँ
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