आलिम के दस्तूर से बेफ़िक्र,
जब मैं नहीं बोलता, "मय" बोलता है
डरता हूँ,
कहीं दबी हुई चिंगारी हंगामा न मचा दे.
महफ़िल को शादाब करने की ख्वाइशें
कहीं बस्ती न जला दें.
मेरी स्याही की पैमानों में,
कई रेशमी किस्से उलझे हैं;
मैं सारे अपने किस्सों को, बेज़बान झोले में रखता हूँ
जब मैं नहीं बोलता, "मय" बोलता है
डरता हूँ,
कहीं किस्सों की समझ,
स्याही को बदनाम न करा दे