शाम है ढल गयी, चुपचाप सोने दो,
घुट रहा हूँ मैं, कुछ शब्द कहने को,
छोड़ दो मुझे, कभी तो सांस लेने दो....
चप्पे चप्पे पर तुम्हारी जाल लिपटी है,
आसमा से ज़मीन तक, हर सोच चिपटी है
कोनों में , दीवारों में बस झाक लेने दो,
छोड़ दो मुझे, कभी तो सांस लेने दो...
शाम है ढल गयी, चुपचाप सोने दो,
सूख गयीं आँखे, कभी तनहा रोने को,
घुट रहा हूँ मैं,
अब सांस लेने को,
छोड़ दो मुझे, कभी तो सांस लेने दो
छोड़ दो मुझे, कभी तो सांस लेने दो
घुट रहा हूँ मैं, कुछ शब्द कहने को,
छोड़ दो मुझे, कभी तो सांस लेने दो....
चप्पे चप्पे पर तुम्हारी जाल लिपटी है,
आसमा से ज़मीन तक, हर सोच चिपटी है
कोनों में , दीवारों में बस झाक लेने दो,
छोड़ दो मुझे, कभी तो सांस लेने दो...
शाम है ढल गयी, चुपचाप सोने दो,
सूख गयीं आँखे, कभी तनहा रोने को,
घुट रहा हूँ मैं,
अब सांस लेने को,
छोड़ दो मुझे, कभी तो सांस लेने दो
छोड़ दो मुझे, कभी तो सांस लेने दो
1 comment:
"चप्पे चप्पे पर तुम्हारी जाल लिपटी है,
आसमा से ज़मीन तक, हर सोच चिपटी है
कोनों में , दीवारों में बस झाक लेने दो,"
बहुत खूब..........
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