लड़खराते डगमगाते लम्हा लम्हा फिसल फिसल,
अरमान मेरे, बुलबुले हैं
मनाता रहा मैं ना तू निकल
खुली पगली नयनों में गिले सपने रह गये,
ख्वाबों कि स्याहियों में, पगले बदल बह गयें।
दिल को क्या मनाऊ,पगला मुझसे ही नाराज़ है,
चोट खाके भी नासमझ को प्यार की तलाश है,
चाँद के पीछे उड़ता ,दौड़ता ये थक गया,
धीमी धीमी आंच में धीमा सा ये सुलग गया।
मनाता रहूँ रात भर, दिल बहल तो जाता है,
तेरी याद जैसे आई, फिर से फिसल जाता है;
मैं ना रोकूँ पगले तुझको, अब रुला के भाग जा,
एक बार रो चूका तू, मैं ना अब रुला सकूँगा॥
पगले मन ,लुक्का छिपी खेलते है फ़लक फ़लक,
मनाता रहूँ तुझको मैं, मुझे तू शाम तक॥
फलक फलक शाम तक,
निष्पलक शाम तक..
अरमान मेरे, बुलबुले हैं
मनाता रहा मैं ना तू निकल
खुली पगली नयनों में गिले सपने रह गये,
ख्वाबों कि स्याहियों में, पगले बदल बह गयें।
दिल को क्या मनाऊ,पगला मुझसे ही नाराज़ है,
चोट खाके भी नासमझ को प्यार की तलाश है,
चाँद के पीछे उड़ता ,दौड़ता ये थक गया,
धीमी धीमी आंच में धीमा सा ये सुलग गया।
मनाता रहूँ रात भर, दिल बहल तो जाता है,
तेरी याद जैसे आई, फिर से फिसल जाता है;
मैं ना रोकूँ पगले तुझको, अब रुला के भाग जा,
एक बार रो चूका तू, मैं ना अब रुला सकूँगा॥
पगले मन ,लुक्का छिपी खेलते है फ़लक फ़लक,
मनाता रहूँ तुझको मैं, मुझे तू शाम तक॥
फलक फलक शाम तक,
निष्पलक शाम तक..
2 comments:
kool poem dude, i dunno why, but i like it, the theme basically...
[:)]
thanx man.. :)
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