Tuesday, May 29, 2007
Under standing physics
Physics claims matter exist in wave form ,although I read it much earlier but lately realized while traveling in mumbai local trains.I was loaded by the crowd as everyone over there are done and shoved at periodic time interval at every local stations.That was when first time I found large chunks of human mass existing as standing waves.
I was also taught that,maximum packing efficiency of a solid can be 74% in cubic closed packing which I never believed and my this belief was also glorified in mumbai local trains.I couldn't differentiate between mine and others body parts although was happy that we can surely exceed the packing fraction more than 74%.
Beaches at Mumbai proves any two opposite charge (male and females) are equiprobable to interact and come closer.The common bond of love have electrons of vendors moving all around.
and Offices here are good example of quantum tunneling,where some time at Sundays boyz can tunnel out through their work.
*I have intensionally not quoted all my physics research papers and am waiting for users to pile up their views
Saturday, May 26, 2007
ITS ALL LOVE
मुट्ठी भर जिंदगी जो बची तेरे नाम कर दी,
मानू मैं इसे प्यार पर, कहे ज़माना खुद्खुशी..
होश खोया तुझे खोजने को,
क्या मेरी मोहब्बत थी बेबसी॥
छोटे सपने ,लंबी रातें
थिरकती खट्टी मीठी बातें,
अस्तित्व का चुपके से खोना ,
ठण्डी आंसू में हंसके रोना॥
प्यार दस्तक हमेशा जादूई होता है,
फिर भी साला आदमी ,प्यार करके रोता है ..
मानू मैं इसे प्यार पर, कहे ज़माना खुद्खुशी..
होश खोया तुझे खोजने को,
क्या मेरी मोहब्बत थी बेबसी॥
छोटे सपने ,लंबी रातें
थिरकती खट्टी मीठी बातें,
अस्तित्व का चुपके से खोना ,
ठण्डी आंसू में हंसके रोना॥
प्यार दस्तक हमेशा जादूई होता है,
फिर भी साला आदमी ,प्यार करके रोता है ..
Thursday, May 17, 2007
ये है मुम्बई मेरी jaaaaaaaaaaan.
चूल्हे पर सपना यंहा धुंए बिना जलता है,
बासी रोटी आधे सिगरेट से पेट यंहा पलता है।
नींद महंगी बिकती है ,तस्वीर धूल से हैं ढके,
मकरी के जाल मे संवेदना भी कब के थके ,
चुल्लू भर मैला पानी, खींचना गले तक,
आंसू भी असमंजस में हैं ,उष्मा उसके अब निरर्थक
परछाईं को कुचलती भीड़ भग दर में फँसी
नंगापन खूद का छिपाने भीख ली नकली हँसी
आकाश को चूमने, शमशान से सुबह निकलना ,
क्या चीज है तू जिंदगी,
कुछ रौशनी बस चूमने,
पल पल ये जलना ,बेबस पिघलना ।
बासी रोटी आधे सिगरेट से पेट यंहा पलता है।
नींद महंगी बिकती है ,तस्वीर धूल से हैं ढके,
मकरी के जाल मे संवेदना भी कब के थके ,
चुल्लू भर मैला पानी, खींचना गले तक,
आंसू भी असमंजस में हैं ,उष्मा उसके अब निरर्थक
परछाईं को कुचलती भीड़ भग दर में फँसी
नंगापन खूद का छिपाने भीख ली नकली हँसी
आकाश को चूमने, शमशान से सुबह निकलना ,
क्या चीज है तू जिंदगी,
कुछ रौशनी बस चूमने,
पल पल ये जलना ,बेबस पिघलना ।
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