कुछ बूंदें जो बचपन से मैंने छोड़े थें
मंझे धागों में लिपटे हुए पतंग,
जिन्हें आसमान को ताक-ताक के बटोरे थें
बारिश में भीगे कुछ पत्तें,
जिनपर छिप छिपकर मैंने कुछ नाम लिखा था
काली राख का हुक्का,
जिनके चाहत में, मैं कुछ शाम बिका था,
छुक छुक करती लम्हों की वह "ट्रेन",जहाँ कुछ लोग मिले थें.
धूल में लिपटे रस्ते, जो मेरे संग कुछ देर चले थें
मेरे साथ पड़े थें
और
मैं था, मिटटी का मेरा ये देह
"हैपी बर्थडे"