कल आधी रात,
इक कतरा चाँद, एक तिनका अरमां
हौले, हौले पिघलकर,
पैमाने में छलक गयें;
कल आधी रात,
इक टुकड़ा अब्र, और कुछ बिखरे तारे,
सतरंगी बनकर
मुझमे बहक गयें।
पॉकेट में थे, मेरे,
कुछ सिक्के पुराने,
और
मुट्ठी भर बटोरे, कुछ चमकीले पत्थर।
आधी विरासत बचपन से बटोरे,
कल आधी रात,
तुम्हे सौंप आया।
तेरे आधे सपने,
मेरी आधी ख्वाइश,
ओस में आधे भीगे पड़े थें।
कल आधी रात,
एक आधी पायल, और,
आधा सा पिघला रेशम का पत्ता,
एक शाख़ की छाव में,
आधे - आधे लिपट गयें।
कल आधी रात,
आधी तेरी पलकें,
आधी मेरी सासें,
अर्श पर सजी,
इक आधी नज़्म में सिमट गयें...
Friday, October 09, 2009
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