तेरी गलियों जब गुजरा..
मेरा दिल तेरे पनघट पर
खड़ा बन कांच का टुकडा..
मोहब्बत हुई मुझे जब से ,
ना जी पाते, ना मर सकते॥
तेरी खुशबू कि चाहत मे
मेरी साँसे...
भटकतें है नही थकतें ..
सज़ा कैसी मोहब्बत में,
मैं भंवरा तेरे आंगन का,बेचैन तेरी kashish में
तू सुनकर झूमती पर ,
आवारे कोयलों की धुन..
मैं डूबा चांद की चाहत में,
वो छिपती बादलों मे है,
कभी आँचल में चांदनी ले कर ,
मुझे पागल बना देना ....
बड़ी फुर्सत से जीता था ..तेरी गलियों से जब गुजरा..