Saturday, September 15, 2012

चिट्ठी



बहुत दिनों बाद खिड़की से पर्दा हटाया
तुमने लिफ़ाफ़े में जो चिट्ठी छोड़ी थी,
वो खिड़की के बाहर पड़ी पड़ी,
बारिशों में गुलज़ार हो चुकी थी

रेखाओं से टहनिया फूट चुकी थीं, और
आधे धुले शब्दों से फूल निकल आये थें.
उनपर वही सारी तितलियाँ बैठी थी,
जो तुमने मेरे कमरे में छोड़ी थीं

मैंने वो चिट्ठी वापस रख ली है
बिस्तर के तले;
आज तकिया मेरा फिर से गीला सा है

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...