Saturday, March 31, 2012

एक टुकड़ा भारत

विचार हूँ, विस्तार हूँ
द्वंद हूँ, विकार हूँ
स्वयं का हूँ रक्षक, स्वयं का संहार हूँ

मैं भी भारत हूँ

पिता हूँ
घर का पेट पालने के लिए,
अनंत बन जाता हूँ
और जिस दिन,
तुम आधे पेट सो जाते हो
तुम मुझे शुन्य बना देते हो;

शुन्य हूँ, अनंत हूँ
मृत स्थिर, ज्वलंत हूँ
तुम्हारा बंधक, तुमसे ही स्वतंत्र हूँ 

मैं भी भारत हूँ

बाबरी में जलता हूँ, 
गोधरा में जलता हूँ
मुंबई की गोलियां सहकर
कश्मीर में पिघलता हूँ
बुझी राख़ पर रखी ठंडी चिता हूँ
मैं माँ का जला हुआ आँचल
मैं झुग्गी संभालता हुआ पिता हूँ 

मैं भी भारत हूँ

मेरी अभिव्यक्ति भी तुम्हारे विचारों की कठपुतली है

उत्सव हूँ, संस्कृति हूँ
जनमत हूँ, राजनीति हूँ 
तुम्हारा बिध्वंश, तुम्हारी ही कृति हूँ

मैं भी भारत हूँ

2 comments:

Unknown said...

Yar bus ye samajh lo ki diwana bana diya :)

Unknown said...

Yar bus ye samajh lo ki diwana bana diya :)

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...