Wednesday, November 30, 2011

College Days

वक़्त कितने भी ठिकाने ले
"क़ल्ब" अब तक College में भटकता रहता है 
उम्र नयी शौक, नए मिजाज़ से खेल ले
ज़ेहन में आज भी मेरे लेकिन, 
उन्ही ख्यालों का ज़िक्र अटकता रहता है 


शहर बदल गया है, 
तारीख़ भी लुढ़कती हुई काफ़ी आगे बढ़ चुकी है
ज़िन्दगी  ने अपने तौर तरीके बदल लिए हैं
और एक हम हैं 
Engineering College के माहौल से निकल नहीं पातें
आलिम कहता है, दुनिया के दस्तूर में ढल जाओ 
और हम इन ख्यालों को निगल नहीं पातें 

आवाम को मेरे बेतुके ख्यालों का फ़िक्र खटकता रहता है
ज़ेहन में आज भी मेरे लेकिन, 
उन्ही ख्यालों का ज़िक्र अटकता रहता है 


 

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...