Friday, October 21, 2011

जब मैं नहीं बोलता, "मय" बोलता है

आलिम के दस्तूर से बेफ़िक्र,
जब मैं नहीं बोलता, "मय" बोलता है  
डरता हूँ, 
कहीं दबी हुई चिंगारी हंगामा न मचा दे.
महफ़िल को शादाब करने की ख्वाइशें
कहीं बस्ती न जला दें.

मेरी स्याही की पैमानों में,
कई रेशमी किस्से उलझे हैं;
मैं सारे अपने किस्सों को, बेज़बान झोले में रखता हूँ 
जब मैं नहीं बोलता, "मय" बोलता है  
डरता हूँ, 
कहीं किस्सों की समझ,
स्याही को बदनाम न करा दे 


1 comment:

A grain of sand said...

lovely!
DOn't be scared...kisse ki samajh syahi ho kabhi banaam nahi karti..
kissa ko us syahi se na likho to hoti hai uski beizzati!
i hope you got my point!
keep up the good work :)
thanks for dropping by...

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

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