Saturday, November 28, 2009

खोया खोया चाँद

फटे जूते,
जिंदगी को,
ठोकरों में लपेट कर,
गलियों में खो गए,

करवटें भारी भारी,
ख्वाब सारे,
बिस्तरों की सिलवटों में समेट कर,
बेफ़िकर ही सो गयें,

रात भर,
मैं जला, और जली, बेवफ़ा सिगरेट,
छल्लों की तलब में जलता रहा,
भूखा पापी पेट...सूखा भारी पेट।

खोया खोया चाँद को चूमने को,
खुशबू भरे सांझ यूँही घूमने को;
जगी फिर वही तलाश है...

नन्ही नन्ही बूंद में भीगने को,
सारी रात बेतूका चीखने को;
उतावला उदास है...

ये नोचने की चाहतें,
ये चाहतों का सिलसिला,
ये हसरतों की करवटें,
ये करवटों के दास्ताँ,

आईने में सूरतें, बिस्तरों में करवटें,
मोम बन पिघल पड़ेंगी,
रात भर,
मैं जलूँगा और बेवफ़ा सिगेरेट ...
छल्लों की तलब में जलेगा,
पापी भूखा पेट।

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...