Friday, August 28, 2009

इंतज़ार

हर रात,
तुम्हारी आहटों का इंतज़ार रहता है;

सोचता हूँ,
मेरी पलकें
थक कर,
जब अलसाई बाती की तरह बुझ जायेंगी,
तुम,
चुपके से आकर,
मेरे शब्दों को जूठा कर दोगी।

और सुबह,
धूप की छन छन
गुदगुदाकर,
जब मुझे चिढ़ाने को बेताब हो जाएँ;
मैं टूटे आवारा पत्तों की तरह,
फ़ुर्सत से,
मदहोशी में हौले हौले बहता हुआ,
सुबह से शाम गुज़र दूँ;

और,
मेरे नज्मों की खुशबू,
वादियों में सहमे बादलों की तरह,
आहिस्ता आहिस्ता फैलने लगे...

हम चुनेंगे कठिन रस्ते, हम लड़ेंगे

हम चुनेंगे कठिन रस्ते जो भरे हो कंकड़ों और पत्थरों से  चिलचिलाती धूप जिनपर नोचेगी देह को  नींव में जिसके नुकीले काँटे बिछे हो  हम लड़ेंगे युद्...